भारत में जब पारंपरिक चित्रकला की बात होती है, तो मैसूर पेंटिंग (Mysore Painting Gold Foil) का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाता है — और वह स्वर्ण सच में सोने की पत्तियों के रूप में इस कला का हिस्सा भी है।
यह चित्रकला सिर्फ रंगों की रचना नहीं, बल्कि भक्ति, शुद्धता और सौंदर्य का संगम है। दक्षिण भारत के राजसी इतिहास में जन्मी यह कला आज भी पूरी दुनिया में अपनी नाजुकता, विवरणों की बारीकी और सोने की चमक के लिए जानी जाती है।
आज इस ब्लॉग में हम जानेंगे:

- मैसूर पेंटिंग का इतिहास
- इसके निर्माण की प्रक्रिया
- इसमें प्रयुक्त सामग्रियाँ
- तंजावुर (Tanjore) पेंटिंग से अंतर
- आज की दुनिया में इसकी प्रासंगिकता
1. इतिहास की झलक: विजयनगर से मैसूर तक

मैसूर पेंटिंग की जड़ें 16वीं सदी के विजयनगर साम्राज्य में पाई जाती हैं। जब विजयनगर का पतन हुआ, तो वहां के कलाकारों ने शरण ली मैसूर, श्रीरंगपट्टण और आसपास के इलाकों में। यहीं से इस कला का नया जन्म हुआ।
वाडियार वंश (Wodeyars of Mysore) के राजाओं ने इस कला को संरक्षण और समर्थन दिया। उनका उद्देश्य था — धार्मिक कथाओं और देवी-देवताओं को इस चित्रशैली के माध्यम से चित्रित करना।
2. मैसूर पेंटिंग की विशेषताएँ

- ✅ सोने की पत्तियाँ (Gold Foil): चित्रों में सोने की असली पत्तियों का प्रयोग होता है जो उन्हें एक राजसी चमक देती हैं।
- ✅ भक्ति प्रधान विषयवस्तु: आमतौर पर भगवान विष्णु, कृष्ण, राम, देवी लक्ष्मी, सरस्वती आदि को दर्शाया जाता है।
- ✅ बारीकी से उकेरी हुई रेखाएँ: चेहरे के भाव, कपड़े के पैटर्न और आभूषणों का विवरण बेहद सूक्ष्म होता है।
- ✅ स्वदेशी रंग: पारंपरिक रंग जैसे लाल, पीला, हरा, नीला, प्राकृतिक साधनों से बनाए जाते हैं।
3. निर्माण प्रक्रिया: हर चरण में साधना

एक प्रामाणिक मैसूर पेंटिंग बनाना कई दिन से लेकर कई हफ्तों तक लग सकता है। इसकी प्रक्रिया है:
1. तैयारी
- लकड़ी या कपड़े के बोर्ड को ‘गेसो’ और चाक पाउडर से तैयार किया जाता है।
2. रेखांकन (Sketching)
- कलाकार सबसे पहले भित्ति चित्र जैसी आकृति बनाते हैं — हाथ से, बिना किसी ट्रेसिंग के।
3. गोल्ड फॉइल लगाना
- विशेष चिपकने वाले लेप (gesso paste) से जिन हिस्सों को उभारा जाता है, उन पर पतली सोने की पत्तियाँ चिपकाई जाती हैं।
4. रंग भरना
- प्राकृतिक रंगों से चित्र को रंगा जाता है। रंगों की परतें हल्के से गहरे की ओर चढ़ाई जाती हैं।
5. अंतिम रूप देना
- आख़िर में, आँखें बनाई जाती हैं — क्योंकि मान्यता है कि “आंख बनाने के बाद ही चित्र में ‘प्राण’ आते हैं।”
4. विषयवस्तु: जब चित्र खुद कथा कहें
मैसूर पेंटिंग में अधिकतर पौराणिक और धार्मिक कथाएं चित्रित की जाती हैं:
- भगवान विष्णु के दशावतार
- कृष्ण लीला — रासलीला, गोवर्धन पर्वत उठाना
- रामायण के दृश्य
- देवियों की महिमा — लक्ष्मी, दुर्गा, सरस्वती
हर चित्र एक कथा है — जहाँ रंग और सोना मिलकर ईश्वर का रूप गढ़ते हैं।
5. तंजावुर बनाम मैसूर पेंटिंग: क्या अंतर है?

| विशेषता | मैसूर पेंटिंग | तंजावुर पेंटिंग |
|---|---|---|
| शैली | नाजुक और बारीक | भारी और उभरी हुई |
| गोल्ड वर्क | सीमित, पृष्ठभूमि में | अधिक मात्रा में, मुख्य पात्रों में |
| रंग योजना | सौम्य और शांत | चमकदार और गहरे रंग |
| मुख्य क्षेत्र | मैसूर, कर्नाटक | तंजावुर, तमिलनाडु |
6. संग्रह और प्रदर्शन
आज मैसूर पेंटिंग का प्रदर्शन कई प्रतिष्ठित जगहों पर होता है:
- मैसूर पॅलेस आर्ट गैलरी
- कर्नाटक राज्य संग्रहालय
- राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय (दिल्ली, बेंगलुरु)
- प्राइवेट आर्ट कलेक्शन और ऑनलाइन गैलरीज़
7. आधुनिक युग में मैसूर पेंटिंग
आज भी इस कला को कई कलाकार और संस्थान सजीव रखे हुए हैं, जैसे:
- कर्नाटक चित्रकला परिषद
- रवींद्र कला निकेतन
- स्थानीय कलाकारों द्वारा वर्कशॉप और ट्रेनिंग
नई पीढ़ी के लिए यह कला डिजिटल रूप में भी पेश की जा रही है, जैसे:
- डिजिटल प्रिंट्स
- NFT (Digital collectible art)
- होम डेकोर आइटम्स पर प्रिंट्स
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🔚 निष्कर्ष: सोने पर कला की मोहर
मैसूर पेंटिंग सिर्फ एक कला नहीं, यह एक साधना, एक परंपरा और एक आस्था का स्वरूप है। इसमें रंगों के साथ-साथ भक्ति की चमक और इतिहास की गरिमा भी जुड़ी होती है।
आज जब दुनिया मशीनों और डिजिटल डिजाइनों की ओर बढ़ रही है, ऐसे में इस पारंपरिक कला का जीवित रहना हमारे सांस्कृतिक उत्तराधिकार की रक्षा करने जैसा है।
यदि आप एक ऐसे चित्र को देखना चाहते हैं जो सोने से भी अधिक मूल्यवान हो — तो एक प्रामाणिक मैसूर पेंटिंग को निहारिए, जहाँ रंगों में बसी होती है ईश्वर की उपस्थिति।
