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सोने की पत्तियों पर सजी राजसी भव्यता: मैसूर पेंटिंग की अनकही चमक!

Mysore Painting Gold Foil

भारत में जब पारंपरिक चित्रकला की बात होती है, तो मैसूर पेंटिंग (Mysore Painting Gold Foil) का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाता है — और वह स्वर्ण सच में सोने की पत्तियों के रूप में इस कला का हिस्सा भी है।

यह चित्रकला सिर्फ रंगों की रचना नहीं, बल्कि भक्ति, शुद्धता और सौंदर्य का संगम है। दक्षिण भारत के राजसी इतिहास में जन्मी यह कला आज भी पूरी दुनिया में अपनी नाजुकता, विवरणों की बारीकी और सोने की चमक के लिए जानी जाती है।

आज इस ब्लॉग में हम जानेंगे:

1. इतिहास की झलक: विजयनगर से मैसूर तक

मैसूर पेंटिंग की जड़ें 16वीं सदी के विजयनगर साम्राज्य में पाई जाती हैं। जब विजयनगर का पतन हुआ, तो वहां के कलाकारों ने शरण ली मैसूर, श्रीरंगपट्टण और आसपास के इलाकों में। यहीं से इस कला का नया जन्म हुआ।

वाडियार वंश (Wodeyars of Mysore) के राजाओं ने इस कला को संरक्षण और समर्थन दिया। उनका उद्देश्य था — धार्मिक कथाओं और देवी-देवताओं को इस चित्रशैली के माध्यम से चित्रित करना।


2. मैसूर पेंटिंग की विशेषताएँ


3. निर्माण प्रक्रिया: हर चरण में साधना

एक प्रामाणिक मैसूर पेंटिंग बनाना कई दिन से लेकर कई हफ्तों तक लग सकता है। इसकी प्रक्रिया है:

1. तैयारी

2. रेखांकन (Sketching)

3. गोल्ड फॉइल लगाना

4. रंग भरना

5. अंतिम रूप देना


4. विषयवस्तु: जब चित्र खुद कथा कहें

मैसूर पेंटिंग में अधिकतर पौराणिक और धार्मिक कथाएं चित्रित की जाती हैं:

हर चित्र एक कथा है — जहाँ रंग और सोना मिलकर ईश्वर का रूप गढ़ते हैं।


5. तंजावुर बनाम मैसूर पेंटिंग: क्या अंतर है?

विशेषतामैसूर पेंटिंगतंजावुर पेंटिंग
शैलीनाजुक और बारीकभारी और उभरी हुई
गोल्ड वर्कसीमित, पृष्ठभूमि मेंअधिक मात्रा में, मुख्य पात्रों में
रंग योजनासौम्य और शांतचमकदार और गहरे रंग
मुख्य क्षेत्रमैसूर, कर्नाटकतंजावुर, तमिलनाडु

6. संग्रह और प्रदर्शन

आज मैसूर पेंटिंग का प्रदर्शन कई प्रतिष्ठित जगहों पर होता है:


7. आधुनिक युग में मैसूर पेंटिंग

आज भी इस कला को कई कलाकार और संस्थान सजीव रखे हुए हैं, जैसे:

नई पीढ़ी के लिए यह कला डिजिटल रूप में भी पेश की जा रही है, जैसे:


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🔚 निष्कर्ष: सोने पर कला की मोहर

मैसूर पेंटिंग सिर्फ एक कला नहीं, यह एक साधना, एक परंपरा और एक आस्था का स्वरूप है। इसमें रंगों के साथ-साथ भक्ति की चमक और इतिहास की गरिमा भी जुड़ी होती है।

आज जब दुनिया मशीनों और डिजिटल डिजाइनों की ओर बढ़ रही है, ऐसे में इस पारंपरिक कला का जीवित रहना हमारे सांस्कृतिक उत्तराधिकार की रक्षा करने जैसा है।

यदि आप एक ऐसे चित्र को देखना चाहते हैं जो सोने से भी अधिक मूल्यवान हो — तो एक प्रामाणिक मैसूर पेंटिंग को निहारिए, जहाँ रंगों में बसी होती है ईश्वर की उपस्थिति

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