शेखावाटी की भूली-बिसरी हवेलियों की दीवारों पर छिपे अद्भुत फ्रेस्को: जानिए इन चित्रों की अनसुनी कहानी

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शेखावाटी की भूली-बिसरी हवेलियों की दीवारों पर छिपे अद्भुत फ्रेस्को: जानिए इन चित्रों की अनसुनी कहानी

मेटा डिस्क्रिप्शन: शेखावाटी की हवेलियों की दीवारों पर बने दुर्लभ फ्रेस्को चित्र आज गुमनामी की धूल में खोते जा रहे हैं। इस ब्लॉग में जानिए इन चित्रों का इतिहास, महत्व और क्यों यह भारतीय कला की अनमोल धरोहर हैं।

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भारत की सांस्कृतिक धरोहर में शेखावाटी क्षेत्र एक ऐसा नाम है, जहां दीवारों पर चित्र बने हैं, लेकिन वो केवल रंग नहीं हैं, बल्कि उस दौर की जिंदगी, भावनाओं, धार्मिकता और आधुनिकता की झलक हैं। राजस्थान के इस इलाके में बनी हवेलियों की दीवारें एक चलती-फिरती आर्ट गैलरी का रूप देती हैं। पर अफसोस, यह कला अब इतिहास बनती जा रही है। आइए जानते हैं शेखावाटी की भूली-बिसरी फ्रेस्को आर्ट की कहानी।

शेखावाटी: भारत का ओपन-एयर आर्ट गैलरी

राजस्थान के झुंझुनूं, सीकर, चुरु और नागौर जैसे जिलों में फैला हुआ यह क्षेत्र अपने भित्तिचित्रों (Frescoes) के लिए विश्व प्रसिद्ध है। 18वीं और 19वीं शताब्दी में यहाँ के अमीर व्यापारी परिवारों ने अपनी हवेलियों को खूबसूरत चित्रों से सजाया। ये चित्र न केवल धार्मिक कथाओं को दिखाते हैं, बल्कि सामाजिक जीवन, नवाचार और आधुनिकता की शुरुआत को भी प्रदर्शित करते हैं।

फ्रेस्को आर्ट क्या है?

फ्रेस्को (Fresco) एक प्राचीन चित्रकला तकनीक है जिसमें गीली चूने की दीवार पर प्राकृतिक रंगों से चित्र बनाए जाते हैं। इससे चित्र दीवार के साथ स्थायी रूप से जुड़ जाता है। शेखावाटी की हवेलियों में इस तकनीक का सुंदरतम उदाहरण देखने को मिलता है।

Shekhawati Frescoes

चित्रों के विषय: धार्मिकता से आधुनिकता तक

शेखावाटी की दीवारों पर बने चित्रों में विविधता की भरमार है:

  • धार्मिक चित्र: रामायण, महाभारत, कृष्ण लीलाएं, देवी-देवताओं की छवियां।
  • सामाजिक चित्रण: विवाह, मेले, तीज-त्योहार, पारिवारिक जीवन।
  • औपनिवेशिक प्रभाव: ट्रेन, कार, घड़ी, ब्रिटिश सिपाही और चर्च।
  • प्राकृतिक चित्रण: पक्षी, जानवर, फूल-पत्तियां और आकाशीय घटनाएं।

कला के कलाकार: जिनका नाम भी अब मिटने लगा है

इन चित्रों को बनाने वाले कलाकार स्थानीय होते थे जो ज्यादातर अनपढ़ होते थे, लेकिन उनकी कला का स्तर बहुत ऊंचा था। इनमें चेतनराम, मोतीलाल जैसे नाम प्रसिद्ध रहे हैं। उन्होंने बिना किसी आधुनिक ब्रश या तकनीक के, हाथों और देसी औज़ारों से इस अद्भुत कला को जन्म दिया।

क्यों गुम हो रही है यह धरोहर?

आज के समय में यह हवेलियां जीर्ण-शीर्ण हो रही हैं।

  • हवेली मालिकों का पलायन
  • रखरखाव की कमी
  • सरकारी और सामाजिक उपेक्षा
  • नवीन पीढ़ी की अनभिज्ञता

इन वजहों से यह अनमोल कला धूल में दबती जा रही है और जल्द ही इतिहास का हिस्सा बन सकती है।

संरक्षण के प्रयास

कुछ गैर-सरकारी संगठनों और आर्ट प्रेमियों ने इन चित्रों के संरक्षण की शुरुआत की है। आर्ट वॉक्स, हेरिटेज वॉक और डिजिटल डॉक्युमेंटेशन के माध्यम से इस कला को फिर से दुनिया के सामने लाने की कोशिश हो रही है।

पर्यटन की दृष्टि से सुनहरा अवसर

अगर सही प्रचार और संरक्षण किया जाए, तो शेखावाटी न केवल भारतीय, बल्कि अंतरराष्ट्रीय पर्यटन का केंद्र बन सकता है।

आवश्यक स्थान:

  • नवलगढ़ – पद्मपुरिया, दुग्गड़िया हवेली
  • मंडावा – गोयनका हवेली
  • फतेहपुर – सिंगानिया हवेली
  • चुरु – मालजी का कमरा

कैसे पहुंचे शेखावाटी?

शेखावाटी जयपुर और दिल्ली से सड़क मार्ग द्वारा जुड़ा है। निकटतम रेलवे स्टेशन झुंझुनूं और सीकर हैं। यहां से निजी टैक्सी या लोकल परिवहन से इन क्षेत्रों तक पहुंचा जा सकता है।

निष्कर्ष

शेखावाटी की हवेलियों की दीवारों पर बनी फ्रेस्को चित्रकला केवल चित्र नहीं हैं, वे भारतीय इतिहास, परंपरा और जीवन का जीवंत दस्तावेज हैं। हमें इन्हें बचाने की आवश्यकता है, ताकि हमारी आने वाली पीढ़ी इस समृद्ध विरासत को देख सके और समझ सके कि कला केवल दीवारों पर रंग नहीं, बल्कि आत्मा का प्रतिबिंब होती है।


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👉 मांडाना आर्ट: मिट्टी की दीवारों पर उभरी राजस्थान की पारंपरिक चित्रकला

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