भारत की कला और संस्कृति की विविधता में एक ऐसी विरासत छिपी है जिसे लोग अक्सर भूल जाते हैं — गंजीफा कार्ड्स (Ganjifa Cards)। यह केवल ताश के पत्ते नहीं हैं, बल्कि यह भारत के राजसी इतिहास, धार्मिक विश्वासों और कलात्मक कौशल का एक जीवंत उदाहरण हैं।
📜 गंजीफा क्या है?

गंजीफा एक पारंपरिक भारतीय ताश का खेल है, जिसे शाही दरबारों में खेला जाता था। यह कार्ड्स लकड़ी, कागज, हाथी दांत, चमड़े या हथकरघा सामग्री से बनाए जाते थे और उन पर सुंदर हाथ से चित्रित चित्र होते थे।
गंजीफा शब्द की उत्पत्ति फ़ारसी शब्द ‘गंजिफ़ा’ से हुई है, जिसका अर्थ होता है — “कार्ड”। इसका भारत में आगमन मुग़ल काल में हुआ और यह धीरे-धीरे भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में फैल गया, जहाँ इसे स्थानीय धार्मिक और सांस्कृतिक रंगों में ढाल दिया गया।
🏰 गंजीफा का इतिहास: जब ताश खेला जाता था राजाओं के दरबार में
गंजीफा की शुरुआत भारत में मुगल सम्राट बाबर के समय मानी जाती है। इसके बाद यह मराठा, राजपूत और ओडिशा के दरबारों में खूब प्रचलित हुआ। खास बात यह है कि हर राज्य ने इसे अपनी संस्कृति के अनुसार ढाल दिया।
- महाराष्ट्र के सावंतवाड़ी में गंजीफा को दशावतार गंजीफा के रूप में चित्रित किया गया।
- कर्नाटक में मैसूर गंजीफा प्रसिद्ध हुआ, जिसमें हिन्दू देवी-देवताओं के चित्र होते थे।
- ओडिशा में पत्तियों को पाम के पत्तों पर उकेरा जाता था।
🎨 गंजीफा कार्ड्स की बनावट और प्रकार
गंजीफा कार्ड्स आमतौर पर गोल या चौकोर होते हैं। इन्हें रंगीन पेंट से सजाया जाता है और हर कार्ड पर खास चित्रकारी होती है। कुछ प्रसिद्ध गंजीफा सेट्स:
- दशावतार गंजीफा – भगवान विष्णु के दस अवतारों पर आधारित।
- मुगल गंजीफा – मुग़ल शैली की चित्रकारी।
- रामायण और महाभारत आधारित गंजीफा।
- शिव-पार्वती श्रृंखला।
🖌️ हस्तनिर्मित कला का अद्भुत उदाहरण
हर गंजीफा कार्ड को कारीगर अपने हाथों से बनाते हैं। पहले कार्ड को आकार देकर, उस पर पेपर या कपड़ा चिपकाया जाता है और फिर उस पर प्राकृतिक रंगों से चित्र बनाए जाते हैं। यह पूरी प्रक्रिया दिन, हफ्तों या महीनों तक चल सकती है।
🙏 धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
गंजीफा सिर्फ खेल नहीं है — यह एक आध्यात्मिक अनुभव भी है। दशावतार गंजीफा में हर कार्ड किसी न किसी अवतार का प्रतीक है। इसे खेलते समय न केवल मनोरंजन होता है बल्कि धर्म और संस्कृति से जुड़ाव भी महसूस होता है।
💔 गंजीफा का पतन और पुनर्जागरण
20वीं सदी में प्लास्टिक कार्ड्स और मोबाइल गेम्स के आगमन से गंजीफा लगभग विलुप्त हो गया था। परंतु आज फिर से इसे संरक्षित और पुनर्जीवित किया जा रहा है।
- कई NGO और आर्टिस्ट्स इसे प्रमोट कर रहे हैं।
- यूनेस्को और क्राफ्ट काउंसिल ऑफ इंडिया जैसे संगठन इसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर ला रहे हैं।
📌 आज का गंजीफा — कला प्रेमियों और कलेक्टर्स की पसंद
आज गंजीफा को केवल खेलने के लिए नहीं बल्कि डेकोरेशन, संग्रह, और एक्सहिबिशन में उपयोग किया जाता है। यह एक heritage art piece बन चुका है जो भारत की कला को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाता है।

📖 गंजीफा सीखें और सिखाएं
- कई कला विद्यालयों में आज गंजीफा कार्ड बनाना सिखाया जाता है।
- यूट्यूब और इंस्टाग्राम पर कलाकार लाइव डेमो देते हैं।
- Etsy जैसे प्लेटफॉर्म पर ये कार्ड्स बेचे भी जाते हैं।
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